लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2714
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

अध्याय - 14
ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त
(Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)

"ब्याज ऋण योग्य कोषों के प्रयोग के लिए दी जाने वाली कीमत है।" - ग्रेयर्स

"ब्याज उस भुगतान को कहते हैं जो पूँजी उधार लेने वाला पूँजी की उत्पादन शक्ति के कारण पूँजीपति को उसे त्यागने के पुरस्कार स्वरूप मिलता है।" - विकसेल

ब्याज के प्रकार - कुल ब्याज, शुद्ध ब्याज।

ब्याज का प्रतिष्ठित सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार ब्याज का निर्धारण बचत व उत्पादकता का सीधा सम्बन्ध होता है। इसी कारण प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा ब्याज को प्रतिफल या प्रतीक्षा का मूल्य कहा जाता है जिसमें पूँजी, बचत व विनियोग क्रमशः ऋणदाता व ऋणों के अंग माने जाते हैं क्योंकि ऋणदाता द्वारा पूँजी की बचत करने के पश्चात् पूँजी की पूर्ति व साहसी निवेश हेतु पूँजी की माँग की जाती है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ब्याज का निर्धारण माँग व पूर्ति द्वारा होता है।

ब्याज का निर्धारण - ब्याज दर का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर पूँजी के माँग एवं पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इसे ब्याज की सन्तुलन दर भी कहा जाता है।

ब्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त की आलोचनाएँ - पूर्ण रोजगार की मान्यता, पूँजी की संकुचित धारणा, बचत और विनियोग में सन्तुलन, बचत तथा विनियोग पर ब्याज का प्रभाव, अनिर्धारित सिद्धान्त, वास्तविक सिद्धान्त, उपभोग और विनियोग सम्बन्ध की उपेक्षा, मुद्रा की निष्क्रियता।

उधारदेय कोष की माँग - विनियोगकर्ताओं एवं उत्पादकों द्वारा माँग, उपभोक्ताओं द्वारा माँग, सरकारी तथा अर्द्धसरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा माँग संग्रह।

उधार देय कोषों की पूर्ति - बचत, बैंक साख निर्माण, अविनियोग, अतीत के संचय का प्रयोग।

कीन्स का तरलता अधिमान सिद्धान्त - कीन्स के अनुसार, ब्याज, बचत या उधार देने योग्य कोष की माँग तथा पूर्ति के द्वारा निर्धारित नहीं होता बल्कि यह द्रव्य की मात्रा तथा उसकी तरलता पसंदगी से निर्धारित होता है। कीन्स ने यह भी बताया कि ब्याज, बचत का पुरस्कार न होकर द्रव्यता के परित्याग का पुरस्कार है। कीन्स के अनुसार, " ब्याज वह कीमत है जोकि धन को नकद रूप में रखने की इच्छा तथा उपलब्ध नकदी की मात्रा में बराबरी स्थापित करती है।"

तरलता जाल - तरलता पसन्दगी रेखा का आकार एवं ढाल ब्याज की दर (Lr) तथा सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग द्वारा निर्धारित होती है। ब्याज की दर तथा सट्टा उद्देश्य के लिए नकद मुद्रा की माँग में विपरीत सम्बन्ध होता है। इसलिए मुद्रा की माँग (अर्थात् तरलता पसन्दगी) वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है। चूँकि ब्याज की दर (L1) पर निर्भर नहीं होती इसलिए वह LP वक्र के ढाल को प्रभावित नहीं करती।

ऋणयोग्य कोष की माँग तथा पूर्ति के विभिन्न स्त्रोत - (i) ऋण योग्य कोष की माँग -निवेश, उपभोग, संचय, (ii) ऋण योग्य कोष की पूर्ति बचत, बैंक साख, असंचय, अनिवेश।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • राष्ट्रीय आय का वह भाग जो पूँजीपति को पूँजी की सेवाओं के बदले में प्राप्त होता है, ब्याज कहलाता है।
  • "ब्याज किसी प्रकार में पूँजी के प्रयोग में दी जाने वाली कीमत है।" - प्रो. मार्शल
  • "एक निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का पुरस्कार ही ब्याज है।' प्रो. कीन्स
  • कुल ब्याज से आशय उस कुल राशि से होता है जो ऋणी ऋणदाता को देता है। यह ब्याज का मूल रूप एवं इसमें अन्य कई राशियों का मिश्रण होता है।
  • शुद्ध ब्याज वह राशि होती है जो कुल ब्याज में जोखिम का पुरस्कार तथा प्रबन्ध असुविधा का पुरस्कार कम करने के बाद प्राप्त होती है। यह कुल ब्याज का एक अंग होता है और इसमें किसी -प्रकार की राशि शामिल नहीं होती है।
  • ब्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त के प्रतिपादक प्रो. पीगू, प्रो. वालरस तथा प्रो. नाइट आदि हैं। इस सिद्धान्त को परम्परावादी सिद्धान्त तथा बचत व विनियोग सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त की वैज्ञानिक व्याख्या प्रो. मार्शल ने अपनी पुस्तक 'Principle of Economics' में की है।
  • ब्याज का प्रतिष्ठित सिद्धान्त समाज से पूर्ण प्रतियोगिता एवं पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित है। पूर्ण रोजगार की स्थिति में साधनों के वर्तमान उपयोग के त्याग या प्रतीक्षा के लिए ब्याज दिया जाता है।
  • ब्याज का प्रतिष्ठित सिद्धान्त पूँजी की पूर्ति के सम्बन्ध में आय से प्राप्त होने वाली बचत को ही शामिल किया जाता है।
  • प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का मानना यह है कि ब्याज एवं बचत दोनों ही ब्याज पर निर्भर करते हैं, जबकि प्रो. केन्स ने अपनी सहमति इस बात पर व्यक्त नहीं की है।
  • प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा को निष्क्रिय माना है अर्थात् आर्थिक दर मूल्यों को प्रभावित नहीं करती। वास्तविकता यह है कि मुद्रा निष्क्रिय नहीं होती और कीन्स के अनुसार मुद्रा सक्रिय होती
  • है। उधार देय कोष सिद्धान्त के प्रतिपादन का श्रेय स्वीडन के अर्थशास्त्रियों को है। इसके प्रारम्भिक प्रतिपादक विकसेल थे।
  • उधार देय कोष सिद्धान्त के अनुसार ब्याज की दर का निर्धारण उधारदेय कोषों की माँग तथा पूर्ति द्वारा होता है।
  • उधार देय कोषों की माँग तथा पूर्ति के साम्य बिन्दु पर ही ब्याज दर का निर्धारण होगा।
  • लार्ड कीन्स ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक General Theory of Employment, Interest and Money में ब्याज की दर के निर्धारण का एक नवीन सिद्धान्त प्रस्तुत किया। कीन्स के अनुसार ब्याज एक मौद्रिक घटना है क्योंकि इसका निर्धारण द्रव्य की माँग व पूर्ति से होता है।
  • दूरदर्शिता उद्देश्य - इसे सतर्कता उद्देश्य भी कहा जाता है। भविष्य के संकटों जैसे बीमारी, दुर्घटना की आशंका से भी लोग द्रव्य को अपने पास रखते हैं।
  • नकदी की माँग सट्टा उद्देश्य से भी होती है। ब्याज दर की अनिश्चितता से लाभ प्राप्त करने वाले भी अपने पास नकद राशि रखते हैं ताकि ब्याज दरों में परिवर्तन से लाभ उठाया जा सके। ब्याज की दर व सट्टा उद्देश्य के लिए नकदी की माँग में प्रतिलोम सम्बन्ध है।
  • जॉन मीनार्ड कीन्स ने मुद्रा की माँग को तरलता पसन्दगी कहा है।
  • एकपक्षीय सिद्धान्त - यह सिद्धान्त एकपक्षीय सिद्धान्त है क्योंकि इसके अन्तर्गत मुद्रा की माँग पर तो ध्यान दिया जाता है जबकि मुद्रा की पूर्ति की उपेक्षा की जाती है।
  • तरलता का विचार मौद्रिक नीति की नई धारणा है, जिसे गुर्ले एवं शॉ तथा रेडक्लिफ रिपोर्ट द्वारा प्रस्तुत किया गया है। यह विचार आर्थिक क्रिया और समस्त माँग को प्रभावित करने में तरलता परिसम्पत्तियों की भूमिका उजागर करता है।
  • तरलता वह परिसम्पत्ति है, जो सरलता से व्यय योग्य हस्तान्तरणीय हो और जिसमें पूँजी की निश्चितता हो।
  • मुद्रा सबसे अधिक महत्वपूर्ण तरल सम्पत्ति है, जिसमें सिक्के, करेन्सी और बैंक जमा शामिल होते हैं। मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है।
  • सावधि जमा के अतिरिक्त अन्य निकट मुद्रा परिसम्पत्तियाँ हैं, जैसे- बाण्ड, प्रतिभूतियों, ऋण- पत्र, विनिमय- बिल, ट्रेजरी बिल व बीमा पॉलिसी आदि।
  • मुद्रा तथा ब्याज के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। मुद्रा की माँग व पूर्ति द्वारा ब्याज दर का निर्धारण होता है।
  • कीन्स का विचार है कि ब्याज एक पूर्णतः मौद्रिक फलन है और उसका निर्धारण मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। इसके अनुसार तरलता पसन्दगी तथा मुद्रा की मात्रा ब्याज की दर निर्धारित करती है।
  • आय तथा उपभोग व्यय के अन्तर को बचत कहते हैं अर्थात् उपभोग करने के बाद जो आय रह जाती है वह बचत कहलाती है।
  • ऋण योग्य कोष की पूर्ति का दूसरा प्रमुख साधन बैंक साख है। व्यापारिक बैंक साख का निर्माण करते हैं। ब्याज की एक न्यूनतम दर के बाद बैंक साख ब्याज सापेक्ष होती है। यह भी स्वाभाविक है कि ब्याज की ऊँची दर पर बैंक अधिक रुपये उधार देंगे तथा ब्याज की नीची दर बैंक कम रुपये उधार देंगे।
  • मुद्रा का मुख्य कार्य है - संचय। संचय से अभिप्राय सम्पत्ति के उस भाग से है जिसको लोग संचय मुद्रा के रूप में देखना चाहते हैं।
  • तरलता जाल के कारण निम्नलिखित हैं - 1. तरलता जाल तब बनता है जब लोग नकदी को इसलिए एकत्र करने लगते हैं क्योंकि उन्हें किसी प्रतिकूल घटना जैसे-  मुद्रा संकुचन, अपर्याप्त कुल माँग, अथवा युद्ध की सम्भावना दिखायी देती हैं। 2. कम मुद्रा स्फीति की स्थिति भी तरलता जाल का कारण बनती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
  2. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
  5. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
  8. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
  11. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
  14. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
  17. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
  20. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
  23. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
  26. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
  29. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
  32. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  33. उत्तरमाला
  34. अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  36. उत्तरमाला
  37. अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
  38. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  39. उत्तरमाला
  40. अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
  41. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  42. उत्तरमाला
  43. अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
  44. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  45. उत्तरमाला
  46. अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
  47. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  48. उत्तरमाला
  49. अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
  50. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  51. उत्तरमाला

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book